हिंदु कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र में इस साल (*23*) का स्तर 23 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है। क्षेत्र में आमतौर पर नवंबर से मार्च के बीच जमीन पर बर्फबारी सामान्य स्तर से 23.6 फीसदी कम हुई। इसके चलते दक्षिण एशिया की जल सुरक्षा खतरे में है। इसका खुलासा एक अंतर-सरकारी संस्था इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की सोमवार को प्रकाशित नई रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में बताया गया है कि लगातार तीसरे साल इस क्षेत्र में सामान्य से कम बर्फबारी हुई है।
आईसीआईएमओडी की रिपोर्ट के अनुसार, सर्दियों के महीनों के दौरान आमतौर पर जमीन पर गिरने वाली बर्फ तेजी से पिघल रही है या अपेक्षित मात्रा में नहीं गिर रही है। शुष्क मौसम के दौरान यह (*23*) नदियों के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है। हिंदु कुश क्षेत्र में बर्फ के स्तर में तेज गिरावट से भारत और पड़ोसी देशों में करीब दो अरब लोगों को पानी की आपूर्ति से जूझना पड़ सकता है।
कार्बन उत्सर्जन बर्फ की कमी की बड़ी वजह: पेमा ग्यामत्शो
आईसीआईएमओडी के महानिदेशक पेमा ग्यामत्शो ने कहा कि इंसानी गतिविधियों से होने वाला कार्बन उत्सर्जन इस बर्फ की कमी की बड़ी वजह है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर अब भी हम नहीं संभले, तो भविष्य में पीने के पानी, खेती और बिजली के लिए हालात और बिगड़ सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘इस क्षेत्रीय बर्फ संकट और दीर्घकालिक खाद्य, जल और ऊर्जा लचीलेपन के लिए इसके द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए, हमें तत्काल विज्ञान-आधारित, दूरदर्शी नीतियों की ओर एक आदर्श बदलाव को अपनाने और सीमा पार जल प्रबंधन और उत्सर्जन शमन के लिए नए सिरे से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।’
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लगातार बर्फ की कमी चिंताजनक: शेर मोहम्मद
आईसीआईएमओडी में रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञ और रिपोर्ट के प्रमुख विशेषज्ञ शेर मोहम्मद ने कहा कि हम लगातार बर्फ की कमी कि स्थितियों को देख रहे हैं और यह चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि हर देश को अपने-अपने इलाके की जरूरतों के अनुसार काम करना होगा, खासकर उन जगहों पर जहां मौसमी बर्फ पिघलना प्रमुख जल स्रोत है।
मेकांग और सालवीन घाटियों में स्थिति गंभीर
आईसीआईएमओडी के अनुसार, सामान्यत: बर्फ पिघलने से प्रमुख नदी घाटियों में कुल वार्षिक जल प्रवाह में करीब 23 फीसदी का योगदान होता है। हालांकि, इस वर्ष बर्फ का स्थायित्व सामान्य स्तर से 23.6 फीसदी कम था, जो पिछले 23 वर्षों में सबसे कम दर्ज किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और दक्षिण पूर्व एशिया सहित एचकेएच क्षेत्र के सभी 12 प्रमुख नदी घाटियों में इस वर्ष सामान्य से कम बर्फ का स्तर रिकॉर्ड किया गया है। मेकांग और सालवीन घाटियों में स्थिति विशेष रूप से गंभीर है, जहां क्रमशः 51.9 फीसदी और 48.3 फीसदी बर्फ का स्थायित्व सामान्य से कम दर्ज किया गया है।
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गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रणालियों में देखी गई बर्फ की कमी
भारत में, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी प्रणालियों में बर्फ की महत्वपूर्ण कमी देखी गई है। गंगा बेसिन में दो दशकों में सबसे कम बर्फ जमी है, जो सामान्य से 24.1 फीसदी कम है। इसका अर्थ यह है कि गर्मियों की शुरुआत में कम बर्फ पिघलेगी। इस समय में खेती और पीने के पानी की मांग अधिक होती है। वहीं, ब्रह्मपुत्र बेसिन में बर्फ का स्तर सामान्य से 27.9 फीसदी कम रहा, जिससे जलविद्युत उत्पादन और कृषि पर बुरा असर पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का सुझाव- सरकारों को पानी बचाने की योजनाएं बनानी चाहिए
भारत और पाकिस्तान में लाखों लोगों का भरण-पोषण करने वाली सिंधु बेसिन में भी बर्फ के आवरण में निरंतर गिरावट दर्ज की गई। हालांकि 2025 में गिरावट 2024 की तुलना में थोड़ी कम गंभीर थी, लेकिन बर्फ का स्तर सामान्य से 16 फीसदी कम रहा। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो एचकेएच क्षेत्र में पानी की कमी का सामान ज्यादा बार करना पड़ सकता है, जिससे भूजल पर अधिक निर्भरता बढ़ेगी और सूखे का खतरा भी बढ़ सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकारों को पानी बचाने की योजनाएं बनानी चाहिए। सूखे से निपटने की तैयारी और वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर पानी का प्रबंधन करना चाहिए।
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